भाजपा सरकार का सबसे बड़ा परिवहन घोटाला: Manohar Lal Khattar, Nitin Gadkari, PMO Office: Blog

भाजपा सरकार का सबसे बड़ा घोटाला, गडकरी- मनोहर लाल खट्टर के खिलाफ कभी भी हो सकते है गैरजमानती वारंट जारी



गुरूग्राम। भारत के इतिहास का सबसे बड़ा महा घोटाला सामने आया है। इस महाघोटाले में कितनी बड़ी रकम डकारी जा चुकी है, इसका अनुमान लगा पाना नामुमकिन ही है। आप रकम के आगे एक के बाद एक जीरो  लगाते थक जाओगे, पर फिर भी आप घोटाले की सही रकम की थाह नहीं पा सकेंगे। शर्मनाक बात व विडम्बना यह है कि खुद को देश व प्रदेश की संपत्ति के रक्षक और सतर्क चौकीदार घोषित करने वाले लोग या तो इस घोटाले में सीधे संलिप्त हैं या फिर पूरी जानकारी होने के बावजूद इस घोटाले पर पर्दा  डालने के दोषी हैं।

इन दोनों ही परिस्थितियों में ये लोग देश के संविधान, कानून और देश की करोड़ों जनता के विश्वास को आघात पहुचाने के अपराधी हैं। भारत देश के इतिहास के इस सबसे बड़े घोटाले में देश के वजीरे आलम (प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी, यानि प्रधानमंत्री कार्यालय, केंद्रीय परिवहन (यातायात) मंत्री नीतिन गडक़री, हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, हरियाणा के परिवहन मंत्री कृष्ण पंवार, केंद्र व दिल्ली सरकार के दर्जन भर बड़े-बड़े आईएएस (IAS) अफसर, हरियाणा के ट्रांसपोर्ट विभाग के कई बड़े अधिकारियों तथा अनेक कारपोरेट घरानों के सीईओ (CEO) की भूमिका बेहद संदेहास्पद है।

इस मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस घोटाले के संबंध में कोर्ट में मुकदमा चलाए जाने की इजाजत मिल चुकी है और गुरूग्राम की सैशन (जिला) अदालत में दो मुकदमे शुरू हो चुके हैं। पहला मुकदमा मुकेश सोनी कुल्थिया बनाम परिवहन मंत्री नीतिन गडक़री एवं अदर्स है, जबकि दूसरे मुकदमे का नाम मुकेश सोनी कुल्थिया बनाम हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर एवं अदर्स है।

इन दोनों मुकदमों में कुल 28 लोगों को आरोपी बनाया गया है, जिनमें प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर ARPGI (एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्मज एंड पब्लिक  ग्रिवेंसिज ऑफ इंडिया) कार्यालय, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कार्यालय, हरियाणा के परिवहन मंत्री कृष्ण पंवार , ट्रांसपोर्ट विभाग हरियाणा, दर्जनों आईएस व प्रशासनिक अधिकारियों,  गुरूग्राम के पुलिस कमीश्नर, गुरूग्राम के सेक्टर- 9 के पुलिस स्टेशन और गुरूग्राम नार्थ के सब डिविजनस मजिस्ट्रेट (SDM) के ऑफिस भी शामिल हैं।

गुरूग्राम के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अश्विनी कुमार मेहत्ता की अदालत में चल रहे इन दोनों केसों में साढ़े तीन सौ पृष्ठ की शिकायत में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के बहुत गंभीर आरोप लगाए गये हैं और आरोपों के पक्ष में बड़ी तादाद  में सबूत भी लगाए गए हैं। आरोपों और सबूतों को देखने (अवलोकन) के बाद ही अदालत ने सभी आरोपियों को समन जारी कर अदालत में हाजिर होने का हुक्म जारी किया है। अदालत की तरफ से बार बार समन भेजने के बाद भी जब कई आरोपी अदालत में पेश नहीं हुए, जिससे तंग आकर अदालत को उनके जमानती वारंट जारी करने का निर्णय लेना पड़ा है।

प्रधानमंत्री कार्यालय अभी भी कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ है, जबकि कोर्ट के समन की तामील हो चुकी है। इसी तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी समन मिल जाने के बाद भी कोर्ट में पेश होने से बच रहे हैं। यहाँ विचारणीय विषय यह है कि जब कानून सब के लिए समान है तो, यह बड़े बड़े नेता इससे वंचित क्यों!? यह तो एक तरह से कोर्ट आदेशो की तौहीन है। कोर्ट अब उन सभी आरोपियों के गैर जमानती वारंट जारी कर सकता है जो जमानती वारंट जारी होने के बावजूद कोर्ट में हाजिर नहीं हो रहे। कोर्ट ने सोमवार को चार और लोगों के गैर जमानती वारंट जारी भी किये हैं जबकि चार अन्य आरोपियों के बैलेबल वारंट जारी कर सभी को अगली सुनवाई पर यानि 20 अप्रैल को कोर्ट में हाजिर होने का हुक्म(आदेश) दिया है।

अदालत में इन सभी आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-120बी (आर्थिक लाभ के लिए धोखा देने की नीयत से साजिश रचना, जिसमे10 वर्ष की कैद व आर्थिक दंड का प्रावधान है), धारा 166 (पब्लिक सर्वेंट द्वारा कानून की उन्लघना करना, जिसमे एक वर्ष की कैद व जुर्माना का प्रावधान है), धारा 336 (दूसरों की जिंदगी की सुरक्षा को खतरे में डालना, जिसमें एक वर्ष तक की कैद व जुर्माने का प्रावधान है), धारा 406 (अपने फायदे के लिए लोगों के विश्वास को ठेस पहुंचाना, जिसमे तीन वर्ष तक की कैद व जुर्माने का प्रावधान है) , धारा 409 (लोक सेवक द्वारा विश्वास का आपराधिक हनन, जिसमें 10 वर्ष तक की कैद व जुर्माने का प्रावधान है), धारा 420 (छलकपट पूर्ण व्यवहार द्वारा बेईमानी से बहुमूल्य वस्तु देने के लिए प्रेरित करना, जिसमे 7 वर्ष का कठोर कारावास व जुर्माने का प्रावधान है), धारा 471 (चालबाजी से तैयार फर्जी दस्तावेज या अभिलेख (पत्रो) का असली की तरह प्रयोग करना, जिसके तहत 10 साल का कारावास व आर्थिक दंड का प्रावधान है) तथा प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट की धारा 13 (1)  के तहत आरोपी बनाया गया है।




इनके अलावा सौ से अधिक प्राइवेट पार्टीज (कारपोरेट कंपनियों) को भी केस  में गवाह के तौर पर पेश होने के लिए समन (आदेश) दिए गए हैं। ज्यादातर कारपोरेट कंपनियां समन तामील होने के बाद कोर्ट में अपनी हाजिरी  लगवा चुकी हैं तथा ट्रांसपोर्ट विभाग के कर्मचारी भी अपनी हाजिरी लगवा चुके हैं। यहां बड़ी बात यह है कि कोर्ट में पेश किए गए तथ्यों, दस्तावेजों व सबूतों की ट्रांसपोर्ट विभाग के अधिकारी व कर्मचारी पुष्टि कर चुके हैं। संक्षिप्त व्रतांत यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर एसडीएम (SDM) कार्यालय के साधारण क्लर्क तक हर कोई इस घोटाले में शामिल है।

कोर्ट में दाखिल शिकायत याचिका में आरोप लगाया गया है कि परिवहन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी पिछले तीन साल से लगातार जनता को अंधेरे में रख कर देश व जनता की सांझी सम्पति को दोनों हाथों से लूटने में लगे हुए हैं और सरकारी खजाने को सीधा नुक्सान पहुंचा रहे हैं। आरोप यह है कि एक एक्टीवा स्कूटर से लेकर करोड़ों रूपये की लक्जरी गाडिय़ों और भारी भरकम वाहनों की खरीद फरोख्त (अधिक दामो पर) में उपभोक्ताओं से वास्तविक कीमत के मुकाबले 65 फीसदी अधिक कीमत वसूली जा रही है और बेचारे उपभोक्ता अज्ञानता के कारण अपनी जेबें खाली करा रहे हैं। यह जनता के साथ विश्वासघात व धोखा है।

सेशन कोर्ट की वेसबाइट पर मुकेश सोनी कुल्थिया बनाम नितिन गडकरी के केस की हिस्ट्री भी उपलब्ध है।

जनता की गाढ़ी कमाई का लूट का यह पैसा वाहन निर्माता कंपनियों, उनके डीलर्स , कारपोरेट घरानों, लालची  नेताओं और भ्रष्ट अफसरों व कर्मचारियों की गिरह में जा रहा है। इसके अलावा यह भी सबूत भी मिले हैं कि ये सब लोग माफिया की तरह सरकारी टैक्स की भी खुलेआम चोरी कर रहे हैं । वाहनों की बिक्री पर लगने वाले 10 फीसदी के रजिस्ट्रेशन टैक्स में भारी घपले के सबूत हाथ लगे हैं।

उदाहरण के लिए मर्सीडीज गाड़ी 30 लाख रूपये में भी मिलती है , 60 लाख में भी और 90 लाख रूपये में भी। यदि किसी ने 90 लाख रूपये की मर्सीडीज गाड़ी खरीदी तो उस पर 10 फीसदी टैक्स के हिसाब से उपभोक्ता से नौ लाख रूपये का टैक्स वसूला जाएगा। उपभोक्ता से नौ लाख रूपये ले लिये जाते है , लेकिन सरकारी खजाने में गाड़ी की कीमत 30 लाख रूपये दिखा कर 10 फीसदी टैक्स के हिसाब से महज तीन लाख रूपये ही जमा कराए जा रहे हैं और छह लाख रूपये का सरकार को चूना लगा दिया जाता है।

गौरतलब है कि इस तरह की घपलेबाजी देश के लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भी जारी है। इसमे कोई दौरान नही है कि केंद्र शासित सात राज्य सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और परिवहन मंत्री नीतिन गडक़री के अंतर्गत हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय, परिवहन मंत्रालय को इस घपले की शिबायते सबूतों के साथ कई दफा की गईं, लेकिन बावजूद इसके किसी ने भी इस बारे में लेशमात्र भी कार्रवाई नहीं की। कोर्ट ने इस अनदेखी को एक तरह से इन अधिकारियों की संलिप्ता के तौर पर देखा है और इसी लिए इन्हें कोर्ट में हाजिर होने का हुक्म देने का फैसला किया है।

आलम यह है कि उपभोक्ताओं के साथ वाहन के टैम्परेरी रजिस्ट्रेशन के नाम पर भी खुली लूट चल रही है। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि किसी भी वाहन से टैम्परेरी रजिस्ट्रेशन का शुल्क 200 रूपए से ज्यादा नहीं लिया जाना चाहिये, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद व आदेशो की धज्जियां उड़ा कर हर वाहन क्रेता से टेम्परेरी रजिस्ट्रेशन (TR) के नाम पर प्रति वाहन 500 से 1500 रु. की अवैध वसूली की जा रही है ।

इस लूट खसोट के सबूत भी कोर्ट में लगाए गए हैं। जब कोर्ट ने कारपोरेट कंपनियों के प्रतिनिधियों से इस अवैध वसूली के बारे में पूछा और वसूली के संबंध में सरकारी आदेश दिखाने को कहा तो वे आदेश दिखा पाने  में असफल रहे। इसी तरह जब परिहन विभाग और एसडीएम कार्यालयों के अधिकारियों व कर्मचारियों से टैक्स के इनवायस के मुताबिक सरकारी खजाने में जमा हुई रकम का रिकार्ड दिखाने को कहा गया तो वे रिकार्ड दिखा पाने में नाकाम रहे।

परिवहन विभाग की तरफ से अधिकारियों ने यह कह कर अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश की कि संबंधित रिकार्ड जल कर राख हो चुका है। लेकिन जब कोर्ट ने जले दस्तावेजों की सूची देने और आगजनी की एफआईआर पेश करने की हिदायत जारी की तो परिवहन अधिकारियों ने कोर्ट में 2014 में हुई आगजनी की एफआईआर पेश कर दी जबकि उनसे रिकार्ड 2016-17, 2017-18  और 2018-19  का मांगा गया था ।

जब कोर्ट ने परिवहन अधिकारियों को लताड़ लगाई तो परिवहन अधिकारियों व एसडीएम कार्यालय ने अगली तारीख पर रिकार्ड पेश करने का आश्वासन देकर पीछा छुड़ाया। लेकिन अगली तारीखों पर संबंधित रिकार्ड कीपर ने बीमार हो जाने की सूचना कोर्ट को भिजवा दी। परिवहन विभाग के अधिकारियों व एसडीएम कार्यालय के कर्मचारियों के लिए यह मामला सांप के मुंह में छछूंदर की तरह फंस गया है जिसे अब न तो निगला जा सकता तथा न ही उगला।

यदि रिकार्ड पेश किया तो सारा भेद खुल जाएगा, नहीं किया तो कोर्ट का डंडा सिर पर पर पड़ेगा । देखना है कि इस आफत से ये लोग कैसे बचेंगे? हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर किस तरह कारपोरेट कंपनियों के दबाव में काम कर रहे हैं, इसके भी बहुत ही पुख्ता सबूत हाथ लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल पहले केंद्र सरकार और देश के सभी राज्यों को निर्देश जारी किए थे कि मोटर व्हीकल एक्ट के प्रावधानों की धज्जियां उड़ाकर निर्मित हुए तमाम भारवाहक वाहनों को फौरन बंद किया जाए। मोटर वहीकल एक्ट में सभी वाहनों के लिए स्पैसेफिक लंबाई चौड़ाई व ऊंचाई रखने की हिदायत होने के बावजूद वाहन निर्माता कंपनियां मनमाने तरीके से ये ओवरसाइज की गाड़ियां बनाती आ रहीं हैं।

ओवरसाइज होने की वजह से वाहन ओवरलोड होते हैं , ड्राइवर का वाहन पर कंट्रोल नहीं रहता, ओवरसाइज वाहन का चालक वाहन के पीछे की स्थिति को नहीं देख पाता, सड़कों पर क्षमता से अधिक बोझ पड़ने से सड़कें जल्दी जवाब (खराब हो जाती है) दे जाती हैं , इससे पब्लिक को परेशानी का सामना करना पड़ता है, वाहनों की लंबाई अधिक होने के कारण पीछे वाले वाहन के ड्राइवर सामने से आ रहे वाहन को नहीं देख पाते और अक्सर ओवरटेक करते समय दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं तथा लोगों की जिन्दकियाँ खतरे में पड़ती हैं ।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे वाहनों को फौरन जब्त कर लिया जाना चाहिये , लेकिन केंद्रीय परिवहन मंत्री नीतिन गडक़री और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और मोटर व्हीकल एक्ट को ताक पर रखते हुए ऐसे वाहनों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।



हरियाणा के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की एक चिट्ठी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के लिए गले में हड्डी की तरह फंस गई है। यह चिट्ठी सबूत के तौर पर कोर्ट में लगाई गई है। यह चिट्ठी तीन साल पहले की तब की है जब खेमका परिवहन विभाग के सेक्रेटरी होते थे।

उन दिनों सरकार ने ओवरसाइज के वाहनों को बंद कर दिया था, लेकिन सात (7) प्रमुख कारपोरेट कंपनियों के सीईओज की मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ चंडीगढ़ में हुई मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री ने ओवरसाइज वाहनों को बंद करने के अपनी ही सरकार के फैसले को एक साल के लिए स्थगित कर दिया था और इन वाहनों को सडक़ों पर चलने देने की इजाजत दे दी थी। बड़ी बड़ी हस्तियों के खिलाफ मुकदमा करने की हिम्मत करने वाले शिकायतकर्ता मुकेश सोनी कुल्थिया

जब मुख्यमंत्री का यह आदेश राज्य के चीफ सेक्रेटरी की मार्फत तामील होने के लिए परिवहन विभाग के तत्कालीन सेक्रेटरी अशोक खेमका के पास पहुंचा तो उन्होंने इस पत्र पर कड़ा नोट लिख डाला कि मुख्यमंत्री का आदेश पालन करने के योग्य नहीं है, क्योंकि यह भारत के संविधान की भावना, मोटर वहीकल एक्ट के प्रावधानों तथा सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के पूरी तरह खिलाफ है। मुख्यमंत्री ने कारपोरेट कंपनियों के सीईओज से मुलाकात होने के बाद यह फैसला लिया है, जिससे साफ है कि फैसला जनहित में नहीं बल्कि कारपोरेट कंपनियों के हित में लिया गया है।

खेमका का यह नोट मुख्यमंत्री को इतना नागवार गुजरा था कि उन्होंने खेमका को फौरन ही परिवहन विभाग से चलता कर एक मामूली विभाग में खुड्डे लाइन लगा दिया था।

यहाँ मजेदार तथ्य यह है कि मुख्यमंत्री का एक साल के लिए लिया गया उपरोक्त फैसला पिछले तीन साल से बदस्तूर चालू है और कारपोरेट कंपनियों के कर्ताधर्ता मुख्यमंत्री से पूरी तरह खुश हैं। मुख्यमंत्री भी इन कंपनियों को डिस्टर्ब (परेशान) करने के बिल्कुल मूड में नहीं है। कंपनियों की मनमानी बदस्तूर जारी है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश फाइलों की भीड़ में धूल खा रहे हैं। मोटर व्हीकल एक्ट की भी किसी को परवाह नहीं है और न ही लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी का ही किसी को अहसास है।

सबसे अहम सवाल तो यह है कि देश के संविधान की रक्षा की शपथ लेने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय परिवहन मंत्री नीतिन गडक़री, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर तथा परिवहन मंत्री कृष्ण लाल पंवार आदि कोर्ट से समन मिलने और बैलेबल वारंट जारी होने के बावजूद कोर्ट में पेश नहीं हो रहे, जिससे साबित होता है कि इन लोगों की निगाहों में देश की न्याय पालिका के प्रति दो कौड़ी की भी इज्जत नहीं है। अगर देश को चलाने वाले लोग ही संविधान के तहत स्थापित अदालतों की तौहीन करेंगे तो देश की आम जनता की निगाह में अदालतों के प्रति कहां से और कैसा व कितना सम्मान बचेगा ?

आप स्वयं विचार कर सकते हो।

Credit: Garima Times

Post a Comment

4 Comments